आखिर क्यों महत्वपूर्ण होता है 'सावन' का महीना

सावन माह में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले  सोमवार "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी युवतियां भगवान शिव के निमित्त व्रत रखती हैं।

आखिर क्यों महत्वपूर्ण होता है 'सावन' का महीना
आखिर क्यों महत्वपूर्ण होता है 'सावन' का महीना
आखिर क्यों महत्वपूर्ण होता है 'सावन' का महीना
आखिर क्यों महत्वपूर्ण होता है 'सावन' का महीना

सावन के पावन महीने का मानव जीवन में गहन महत्व है। सावन को वर्षा ऋतु का महीना या 'पावन ऋतु' भी कहा जाता है, क्योंकि इस समय बहुत वर्षा होती है। सावन में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं, जिनमें 'हरियाली तीज', 'रक्षाबन्धन', 'नागपंचमी' आदि प्रमुख हैं। 'श्रावण पूर्णिमा' को दक्षिण भारत में 'नारियली पूर्णिमा' और 'अवनी अवित्तम', मध्य भारत में 'कजरी पूनम', उत्तर भारत में 'रक्षाबंधन' और गुजरात में 'पवित्रोपना' के रूप में मनाया जाता है। सावन माह में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह में पड़ने वाले  सोमवार "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं, जिनमें सुहागिन स्त्रियां और कुंवारी युवतियां भगवान शिव के निमित्त व्रत रखती हैं।

'शिव' का प्रिय महीना
सावन का पावन महीना भगवान शिव को अति-प्रिय है। सावन में ही माता पार्वती ने निराहार रहकर कठोर व्रत कर शिवजी को प्रसन्न किया और उनसे विवाह किया। इसके बाद से महादेव के लिए सावन विशेष हो गया। भगवान शिव सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए और वहां उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया। तबसे प्रत्येक वर्ष सावन में शिवजी अपने ससुराल आते हैं। सावन में ही समुद्र मंथन से निकले कालकूट विष  को कंठ में समाहित कर शिवजी ने सृष्टि की रक्षा की, पर विषपान से उनका कंठ नीलवर्ण हो गया और उस विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया। भू-लोकवासियों के लिए शिवकृपा पाने का यह उत्तम मास है।

'शिव' की पूजा
सावन में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। सावन में पड़ने वाले  सोमवार "सावन के सोमवार" कहे जाते हैं। स्त्री-पुरुष, बच्चे, बड़े, वृद्ध सभी भगवान शिव के निमित्त व्रत रखते हैं। सावन में भगवान शिव के 'रुद्राभिषेक' का विशेष महत्त्व है। अतः सावन के पावन महीने में प्रतिदिन 'रुद्राभिषेक' किया जा सकता है। रुद्राभिषेक में जल, दूध,  दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर, गंगाजल तथा गन्ने के रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, शमीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं। अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भगवान भोलेनाथ को भोग के रूप में चढा़या जाता है।

पूजन सामग्री का महत्व
शिवलिंग पर बेलपत्र तथा शमीपत्र चढा़ने का वर्णन पुराणों में भी किया गया है। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग पर बेलपत्र चढा़या जाता है। शास्त्रानुसार शिवलिंग पर 'आक' का एक फूल चढ़ाने से सोने के दान के बराबर फल मिलता है। हज़ार आक के फूलों की अपेक्षा एक कनेर का फूल, हज़ार कनेर के फूलों को चढ़ाने की अपेक्षा एक बिल्वपत्र से दान का पुण्य प्राप्त होता है। हज़ार बिल्वपत्रों के बराबर एक द्रोण या गूमा फूल फलदायी होते हैं। हज़ार गूमा के बराबर एक चिचिड़ा, हज़ार चिचिड़ा के बराबर एक कुश का फूल, हज़ार कुश फूलों के बराबर एक शमी का पत्ता, हज़ार शमी के पत्तों के बराकर एक नीलकमल, हज़ार नीलकमल से ज्यादा एक धतूरा और हज़ार धतूरों से भी ज्यादा एक शमी का फूल शुभ और पुण्यदायी होता है।

सावन के सोमवार
सावन में शिवजी की पूजा का विशेष विधान हैं। सावन में प्रत्येक सोमवार को शिवजी के निमित्त व्रत किए जाते हैं। कुछ भक्त पूरे मास ही शिवजी का पूजन और व्रत करते हैं। सावन के सोमवारों में शिवजी के व्रत, पूजा और शिवजी की आरती का विशेष महत्त्व है। यह व्रत भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए किये जाते हैं। व्रत में भगवान शिव का पूजन करके एक समय ही भोजन किया जाता है। व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान कर 'शिव पंचाक्षर मन्त्र' का जप करते हुए पूजन किया जाता है। शिवजी के ये व्रत शुभ फलदायी होते हैं। भगवान भोलेनाथ की कृपा से व्रतियों के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।

कांवड़
सावन के पावन महीने में कांवड़ का भी विशेष महत्व होता है। 'कांवर' संस्कृत भाषा के शब्द 'कांवांरथी' से बना है। यह एक प्रकार की बहंगी है, जो बाँस की फट्टी से बनाई जाती है। 'काँवर' तब बनती है, जब फूल-माला, घंटी और घुंघरू से सजे दोनों किनारों पर वैदिक अनुष्ठान के साथ गंगाजल  का भार पिटारियों में रखा जाता है। धूप एवं दीप की खुशबू, मुख में 'बोल बम' का नारा, मन में 'बाबा एक सहारा' का जय-जयकारा गुंजता रहता है। शास्त्रानुसार पहला 'काँवरिया' रावण था।  प्रभु श्री रामचंद्र जी ने भी भगवान शिव को कांवर चढ़ाई थी। शास्त्रों के अनुसार पतित-पावनी गंगा और उनकी जैसी अन्य पवित्र नदियों के जल से अभिषेक करने पर शिवजी प्रसन्न होते है और भक्तों की संपूर्ण मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।

हरियाली तीज
सावन का महीना प्रेम और उत्साह का महीना माना जाता है। सावन में नई-नवेली दुल्हन अपने मायके जाकर झूला-झूलती हैं और सखियों से अपने पिया और उनके प्रेम की बातें करती हैं। प्रेम के धागे को मजबूत करने के लिए सावन में कई त्योहार मनाये जाते हैं। इन्हीं में से एक त्योहार 'हरियाली तीज' है। यह त्योहार हर साल श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पतिरूप में पाने के लिए तपस्या की थी। इससे प्रसन्न होकर शिव जी ने 'हरियाली तीज' के दिन ही पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था। इस व्रत के करने से सुहाग की उम्र लंबी होती है। कुंवारी कन्याओं को मनचाहा जीवन साथी मिलता है।