राजीव गांधी फाउंडेशन से जुड़ा मेहुल चोकसी का नाम, कांग्रेस को जवाब देना होगा मुश्किल, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा मेहुल चोकसी को लेकर लगाए गए आरोपों के बाद बढ़ी सियासी सरगर्मी
राजीव गांधी फाउंडेशन से भगोड़े हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी का नाम जुड़ने से कांग्रेस की सियासी मुश्किलें बढ़ गई हैं। जानकार बताते हैं कि मेहुल को लेकर अभी तक मोदी सरकार को घेरने वाली कांग्रेस को इस मसले पर जवाब देना कठिन होगा। बीजेपी ने शनिवार को सीधा आरोप लगाया कि मेहुल ने फाउंडेशन को भारी रकम दी थी। यह रकम मेहुल के स्वामित्व वाली कंपनी नविराज इस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दी गई थी। फिलहाल कितनी रकम दी गई थी इसका पता अभी नहीं चल पाया है।
राजीव गांधी फाउंडेशन से भगोड़े हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी का नाम जुड़ने से कांग्रेस की सियासी मुश्किलें बढ़ गई हैं। जानकार बताते हैं कि मेहुल को लेकर अभी तक मोदी सरकार को घेरने वाली कांग्रेस को इस मसले पर जवाब देना कठिन होगा। बीजेपी ने शनिवार को सीधा आरोप लगाया कि मेहुल ने फाउंडेशन को भारी रकम दी थी। यह रकम मेहुल के स्वामित्व वाली कंपनी नविराज इस्टेट्स प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दी गई थी। फिलहाल कितनी रकम दी गई थी इसका पता अभी नहीं चल पाया है।
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा द्वारा मेहुल चोकसी को लेकर लगाए गए आरोप से सियासी सरगर्मी बढ़ गई है। बता दें कि हीरा व्यापारी मेहुल चोकसी पंजाब नेशनल बैंक समेत कई बैंकों को करोड़ों का चूना लगाकर देश छोड़कर भाग गया है। इसके फरार होने के बाद कांग्रेस अरसे से मोदी सरकार को दोषी ठहरा रही थी।
राहुल गांधी स्वयं मेहुल का नाम लेकर प्रधानमंत्री पर सीधा हमला करते रहे हैं। ऐसे में राजीव गांधी फाउंडेशन का चोकसी के साथ नाम जुड़ने से कांग्रेस सियासी तौर पर घिरती नजर आ रही है। राजीव गांधी फाउंडेशन की साल 2013-15 की रिपोर्ट के अनुसार, मेहुल ने अपनी कंपनी के जरिए चंदा दिया था।
राजीव गांधी फाउंडेशन को चीन से मिले चंदे और चीन के कथित खुफिया संगठन चाइना एसोसिएसन फॉर इंटरनेशनल फ्रैंडली कांटैक्ट (सीएएफआइसी) से रिश्ते खुलने के बाद कांग्रेस की परेशानी बढ़ गई है। बीजेपी के नेशनल सोशल मीडिया प्रभारी अमित मालवीय ने आरोप लगाया कि अभी तक जो जानकारियां सामने आ रही हैं उससे साबित होता है राजीव गांधी फाउंडेशन एक शेल (मुखौटा) कंपनी की तरह काम कर रहा था।
सरकारी संरक्षण देने के लिए इसके नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, विदेशी कंपनियों और सरकारों से लंबी रकम वसूली गई। साल 1992 से शुरू हुई इस इस संस्था से पिछले 18 साल में मात्र 2900 से कुछ अधिक लोगों को ही लाभ पहुंचा है। शुरुआती वर्षों में इस संस्था ने क्या काम किया इसकी जानकारी नहीं मिल रही।
बीजपी-कांग्रेस के बीच घमासान का मुद्दा बने राजीव गांधी फाउंडेशन को सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में भी दिल खोलकर चंदा दिया। संप्रग सरकार के लगातार के 2004 से 2014 के बीच इस फाउंडेशन पर चंदे की बारिश होती रही। यह रकम कितनी थी इसका पता तो नहीं चला लेकिन यह जरूर है कि कई कंपनियों ने तो हर साल बड़ी रकम दी। जिन कंपनियों ने उदारता पूर्वक चंदा दिया उनमें ओएनएजीसी, सेल, गेल, स्टे बैंक ऑफ इंडिया, ओरियंटल बैंक ऑफ कामर्स, हुडको, आइडीबीआइ, खास हैं।
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