दिल्ली में ऑक्सीजन संकट पर बोला SC- अफसरों को जेल भेजकर नहीं होगा समस्या का हल
दिल्ली में ऑक्सीजन की कमी का मसला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। देश की शीर्ष अदालत ने बुधवार को इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि अफसरों को जेल में डालने या फिर उन पर अवमानना की कार्रवाई करने से ऑक्सीन नहीं आएगी। हमें बताइए कि आखिर आपने ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए क्या कदम उठाया। अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा कि हमें बताइए कि आखिर आपने ऑक्सीजन की कमी के संकट को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए हैं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पूछा कि आखिर आपने दिल्ली को कितनी ऑक्सीजन भेजी है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस शाह ने कहा कि यह एक राष्ट्रीय आपदा है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि ऑक्सीजन की कमी से लोगों की मौतें हुई हैं।
हाई कोर्ट की ओर से केंद्र को जारी अवमानना नोटिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि अधिकारियों को जेल में डालने से शहर में ऑक्सीजन नहीं आएगी, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि जिंदगियां बचें। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि हमें बताइए कि आपने पिछले तीन दिन में दिल्ली को कितनी ऑक्सीजन आवंटित की है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि दिल्ली में कोविड वैश्विक महामारी बहुत गंभीर चरण में है।
इसके बाद सॉलीसीटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि यह मुकदमेबाजी ठीक नहीं है। केंद्र और दिल्ली की सरकार निर्वाचित सरकारें हैं और कोविड-19 मरीजों की सेवा के लिए भरसक कोशिश कर रहीं हैं। बता दें कि ऑक्सीजन की कमी के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। इससे पहले उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी कर पूछा था कि कोविड-19 मरीजों के उपचार के लिए ऑक्सीजन की आपूर्ति के बारे में उसके आदेश का अनुपालन करने में विफल रहने पर उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई क्यों नहीं की जाए।
सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता यह मामला प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष उठाया क्योंकि देश में कोविड-19 प्रबंधन पर स्वतं: संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की पीठ बुधवार को उपलब्ध नहीं थी। प्रधान न्यायाधीश नीत पीठ ने केंद्र की याचिका न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया। तुषार मेहता इस मामले पर बुधवार को ही सुनवाई चाहते थे लेकिन पीठ ने इसे न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की सहूलियत पर छोड़ दिया।
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